Intergovernmental Panel on Climate Change (IPCC) ने हाल ही में “Climate Change 2021 The Physical Science Basis” शीर्षक से अपनी छठी मूल्यांकन रिपोर्ट प्रकाशित की। आईपीसीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन का मतलब है कि महासागर अधिक अम्लीय होते जा रहे हैं और ऑक्सीजन की कमी हो रही है। महासागरीय धाराएँ अधिक परिवर्तनशील होती जा रही हैं और लवणता के पैटर्न - समुद्र के वे भाग जो सबसे अधिक नमकीन और कम नमकीन हैं - बदल रहे हैं।अन्तर सरकारी वैज्ञानिक निकाय है।यह संयुक्त राष्ट्र का आधिकारिक पैनल है जो जलवायु में बदलाव और ग्रीनहाउस गैसों का ध्यान रखता है।इस संस्था को २००७ में शांति नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल Intergovernmental Panel on Climate Change (IPCC)
IPCC संयुक्त राष्ट्र का एक अंतर सरकारी निकाय है। यह मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन, इसके प्राकृतिक, राजनीतिक और आर्थिक प्रभावों और संभावित प्रतिक्रिया विकल्पों को समझने के लिए वस्तुनिष्ठ वैज्ञानिक जानकारी प्रदान करता है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) ने 1988 में IPCC की स्थापना की थी।
- IPCC की स्थापना संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम और विश्व मौसम संगठन द्वारा वर्ष 1988 में की गई थी।
- यह जलवायु परिवर्तन पर नियमित वैज्ञानिक आकलन, इसके निहितार्थ और भविष्य के संभावित जोखिमों के साथ-साथ अनुकूलन तथा शमन के विकल्प भी उपलब्ध कराता है।
- इसका मुख्यालय ज़िनेवा में स्थित है।
मुख्य बिंदु
- अन्तर सरकारी वैज्ञानिक निकाय है।यह संयुक्त राष्ट्र का आधिकारिक पैनल है जो जलवायु में बदलाव और ग्रीनहाउस गैसों का ध्यान रखता है।
- इस संस्था को 2007 में शांति नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- AR6 रिपोर्ट के लेखकों के अनुसार, हिंद महासागर के गर्म होने से समुद्र के स्तर में वृद्धि होगी, जिससे निचले स्तर के क्षेत्रों में अधिक बार और गंभीर तटीय बाढ़ आएगी
- इसके परिणामस्वरूप दक्षिण एशिया में 21वीं सदी में तीव्र और लगातार गर्मी की लहरें और आर्द्र गर्मी का तनाव होगा।
- इस रिपोर्ट में प्रकाश डाला गया है, भले ही तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस सीमित हो, फिर भी चरम मौसम की घटनाएं (extreme weather events) देखी जाएंगी।
- हीटवेव, भारी वर्षा की घटनाएं और ग्लेशियरों का पिघलना भारत जैसे देशों को प्रभावित कर रहा है।
- वर्ष 2100 तक 1.5°C ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिये 100 से 1000 गीगाटन के बीच के कार्बन डाइऑक्साइड रिमूवल (Carbon Dioxide Removal- CDR) को हटाना होगा।
- रिपोर्ट ने विकसित देशों को तत्काल, ज्यादा उत्सर्जन कटौती और डीकार्बोनाइजेशन करने की चेतावनी दी।
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