क्या आप जानते है की गणेशोत्सव मनाने की क्या परंपरा रही है और ये कैसे, कब से शुरू हुयी?



गणेशोत्सव मनाने की क्या परंपरा रही है? 






श्री गणेश जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुआ था। इसीलिए हर साल इस दिन गणेश चतुर्थी धूमधाम से मनाई जाती है। भगवान गणेश के जन्म दिन के उत्सव को गणेश चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन, भगवान गणेश को बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है।

गणेश चतुर्थी पूजाशुभ मुहूर्त

इस साल यह 10 सितंबर को मनाया जाएगा. 11 दिनों तक चलने वाले इस उत्सव का समापन 21 सितंबर को होगा



गणेश चतुर्थी  प्रारंभ –  10 सितंबर 
गणेश चतुर्थी का समापना – 
21 सितंबर 

शुभ मुहूर्त

सुबह मुहूर्त- 06.03 AM से 08.33 AM तक  

दोपहर गणेश पूजा – 11.04 AM से 13.32 PM 

अभिजीत मुहूर्त – 11.30 AM से 12.20 PM 

अमृत काल – 06.52 AM से 08.28 AM 

ब्रह्म मुहूर्त – 04.10 AM से 05.55 AM 

विजय मुहूर्त- 01.59 PM से 02.49 PM 

गोधूलि बेला- 05.55 PM से 06.19 PM 

निशिता काल- 11.32 PM से 12.18 AM


पूजा सामग्री


पूजा के लिए जरूरी सामग्री  की जरूरत होती है। वो इस प्रकार हैं. शुद्ध जल, दूध, दही, शहद, घी, चीनी, पंचामृत, वस्त्र, जनेऊ, मधुपर्क, सुगंध चन्दन, रोली सिन्दूर, अक्षत (चावल), फूल माला, बेलपत्र दूब, शमीपत्र, गुलाल, आभूषण, सुगन्धित तेल, धूपबत्ती, दीपक, प्रसाद, फल, गंगाजल, पान, सुपारी, रूई, कपूर

विनायक चतुर्थी पूजा विधि

  • इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें। इसके बाद घर के मंदिर में सफाई कर दीप प्रज्वलित करें। दीप प्रज्वलित करने के बाद भगवान गणेश का गंगा जल से जलाभिषेक करें। इसके बाद भगवान गणेश को साफ वस्त्र पहनाएं। भगवान गणेश को सिंदूर का तिलक लगाएं और दूर्वा अर्पित करें। भगवान गणेश को दूर्वा अतिप्रिय होता है। जो भी व्यक्ति भगवान गणेश को दूर्वा अर्पित करता है, भगवान गणेश उसकी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।  भगवान गणेश की आरती करें और भोग लगाएं। 



भगवान गणेश की पूजा करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है. सनातन धर्म में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है. इसलिए गणेश चतुर्थी का भी विशेष महत्व है. ऐसा माना जाता है कि भगवान गणेश की विधिवत पूजा करने से सभी समस्याओं का समाधान होता है. भगवान गणेश की मूर्ति, पानी का बर्तन, 'पंचामृत', लाल कपड़ा, 'रोली', 'अक्षत', 'कलावा जनेऊ', इलायची, नारियल, 'चंडी का वर्क', 'सुपारी', 'लौंग', पंचमेवा, 'घी' पूजा को पूरा करने के लिए कपूर', 'चौकी' और 'गंगाजल' इकट्ठा करने की जरूरत है.भगवान गणेश को  'विघ्नहर्ता' के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ है सभी बाधाओं को दूर करने वाले

  • अगर आप व्रत रख सकते हैं तो इस दिन व्रत रखें।




जानें क्यों मनाई जाती है गणेश चतुर्थी

गणेश चतुर्थी भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है | वैसे तो मान्यताओं के मुताबिक भ्राद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को भगवान गणेश का जन्म हुआ था, देशभर में गणेश चतुर्थी का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन इस त्योहार पर महाराष्ट्र का नजारा कुछ और ही होता है | ऐसे में देशभर में लोग अपने घरों में गणेश भगवान की पूजा करते हैं लेकिन महाराष्ट्र में इसे बड़े तरीके से मनाया जाता है. जगह-जगह बड़े-बड़े पंडाल बनाए जाते हैं जहां लोग एक साथ इकट्ठा होकर नाचते गाते है और भगवान गणेश की पूजा करते हैं.  गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी की मूर्ति को घर पर लाया जाता है. हिंदू धर्म के मुताबिक, किसी भी शुभ काम को करने से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है. ऐसे में आज गणेश चतुर्थी के मौके पर हम आपको इस उत्सव को मनाने के पीछे के कारणों के बारे में बताने जा रहे

गणेश चतुर्थी व्रत कथा



पौराणिक मान्यताओं के अनुसार  माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपना द्वार पाल बना दिया। शिवजी ने जब प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें रोक दिया। इस पर शिवगणोंने बालक से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में उसे कोई पराजित नहीं कर सका। अन्ततोगत्वा भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर काट दिया। इससे भगवती शिवा क्रुद्ध हो उठीं और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली। भयभीत देवताओं ने देवर्षिनारद की सलाह पर जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया।

शिवजी के निर्देश पर विष्णुजीउत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आए। मृत्युंजय रुद्र ने गज के उस मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। माता पार्वती ने हर्षातिरेक से उस गज मुख बालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्यहोने का वरदान दिया। भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा। तू सबका पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों का अध्यक्ष हो जा। गणेश्वर तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है। इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी। कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय गणेश तुम्हारी पूजा करने के पश्चात् व्रती चंद्रमा को अ‌र्घ्य देकर ब्राह्मण को मिष्ठान खिलाए। तदोपरांत स्वयं भी मीठा भोजन करे। वर्ष पर्यन्त श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।




गणेश आरती- सुखकर्ता दुखहर्ता...

सुखकर्ता दुखहर्ता, वार्ता विघ्नांची|
नुरवी; पुरवी प्रेम, कृपा जयाची |
सर्वांगी सुंदर, उटी शेंदुराची|
कंठी झळके माळ, मुक्ताफळांची॥१॥

जय देव, जय देव जय मंगलमूर्ती|
दर्शनमात्रे मन कामना पुरती ॥धृ॥

रत्नखचित फरा, तुज गौरीकुमरा|        
चंदनाची उटी , कुमकुम केशरा|
हिरेजडित मुकुट, शोभतो बरा |
रुणझुणती नूपुरे, चरणी घागरिया|
जय देव जय देव जय मंगलमूर्ती ॥२॥    

लंबोदर पीतांबर, फणिवरबंधना |
सरळ सोंड, वक्रतुंड त्रिनयना|
दास रामाचा, वाट पाहे सदना|
संकटी पावावे, निर्वाणी रक्षावे, सुरवरवंदना|
जय देव जय देव, जय मंगलमूर्ती|
दर्शनमात्रे मनकामना पुरती ॥३॥

ऐसे शुरू हुई गणेशोत्सव



माना जाता है कि पेशवा सवाई माधवराव के शासन के दौरान पुणे के प्रसिद्ध शनिवारवाड़ा नामक राजमहल में भव्य गणेशोत्सव मनाया जाता था यहीं से गणेशोत्सव की शुरुआत हुई इसके बाद 1890 में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बाल गंगाधर तिलक अक्सर सोचा करते थे कि कैसे लोगों को इकट्ठा किया जाए ऐसे में उनके मन में विचार आया कि लोगों को एक साथ लाने के लिए क्यों न गणेशोत्सव को ही सार्वचनिक रूप से मनाया जाए ऐसे में महाराष्ट्र में गणेशोत्सव को इतने बड़े पैमाने पर मनाने की शुरुआत बाल गंगाधर तिलक के जरिए हुई
बाल गंगाधर तिलक ने सार्वजनिक रूप से गणेशोत्सव का आयोजन किया जिसके बाद ये परंपरा पूरे महाराष्ट्र में लोकप्रिय हो गई 



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1 Comments

  1. धन्यवाद, जानकारी देने के लिए 🙏
    आगे भी ऐसी जानकारी देते रहिये।

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